एक गाँव था, जिसके पास से बहती थी एक नदी। गरजती, लरजती, वो नदी सब निगल जाती। जो उसमें जाता फिर कभी किसी को ना दिखता। बड़े बूढ़े कहते कि इस नदी ने ना जाने कितने जानवर, इंसान और तो और गाँव भी निगल चुकी थी। गाँव में सब बोलते थे,
"बरसात आने पर वो नदी भूखी हो जाती है।"
इसीलिए गाँव वालों ने उस पर एक पुल बना दिया था। ताकि वो नदी फिर किसी को ना निगले।
पर उस दिन बिस्वा उस पुल पर खड़ा नदी में झांक रहा था। आज वो नदी को भोग लगाने आया था। पर खुद का नहीं, बल्कि उस नन्ही सी जान का जो उसके हाथों में थी।
बिस्वा के ब्याह को अभी 3 साल ही हुए थे, और पिछली अमावस की रात को उसके यहाँ जन्म लिया एक चाँद जैसी दूधिया बच्ची ने। बच्ची जितनी प्यारी थी, गाँव वाले उतने ही दक़ियानूसी थे। बिस्वा के दिमाग़ में ये बात घर कर चुकी थी, कि वो पालेगा तो केवल बेटा। तो अब बेटी को गले कैसे लगाता।
पर बिस्वा की लुगाई भी बड़ी पक्की थी। उसे पता था कि बिस्वा और बाक़ी लोग गिद्ध की सी नज़र लगाए थे, तो वो बच्ची को हर दम अपनी छाती से चिपकाए रखती।
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