राजीव की आँख खुली तो उसने पाया की वो उस फ़ार्महाउस की बड़ी सी रसोई में एक लकड़ी की कुर्सी पर बंधा पड़ा था। उसके जिस्म पर एक भी कपड़ा नहीं था, और उसके सामने उसकी गर्लफ़्रेंड निशा, अपने मम्मी और पापा के साथ खड़ी उसे ही देख रही थी।
चेतावनी : ये कहानी केवल वयस्कों के लिए है।
“निशा, ये सब क्या है?” राजीव ने अटकती हुई साँसों के साथ सवाल पूछने की कोशिश की।
निशा एक क़ातिल मुस्कान के साथ धीरे से चलती हुई राजीव के पास आयी, और उसके कान में हंसते हुए कहने लगी, “भूल गए राजीव? मैंने तुम्हें बताया था की आज हम मेरे मम्मी पापा के साथ लंच करेंगे? इसीलिए तो तुम यहाँ आए हो। बस, मैं तुम्हें ये बताना भूल गयी, की लंच — तुम ही हो।”
ये कहकर निशा ज़ोर से हंसी। राजीव को अपने कानों पर यक़ीन नहीं हो रहा था। उसे लगा कि शायद निशा अपने घरवालों के साथ मिलकर उसके साथ कोई भद्दा मज़ाक़ कर रही है। लेकिन ये उसकी बदक़िस्मती ही थी, कि ये सब मज़ाक़ नहीं बल्कि सच्चाई थी। निशा, राजीव को अपने मम्मी पापा से मिलाने के लिए लंच के बहाने शहर से दूर वीराने में बने अपने फ़ार्महाउस पे लायी थी। जहां राजीव एक बार बेहोश हुआ तो सीधा उनकी रसोई में उठा।
“पता है राजीव, मेरी फ़ैमिली का टेस्ट थोड़ा अलग है।” निशा ने राजीव के नंगे बदन पर उँगली फिरते हुए कहा। लेकिन राजीव की नज़र पूरी रसोई में घूम रही थी। निशा की मम्मी गैस के ऊपर मसालों का छौंक तैयार कर रही थीं, और उसके पापा अलग अलग तरह के चाकू और गंडासे तेज़ कर रहे थे। राजीव अब तक समझ चुका था की ये सब एक मज़ाक़ या कोई डरावना सपना नहीं था। और दूसरी तरफ़, निशा बोलना बंद ही नहीं कर रही थी।
Write a comment ...