उस शोरगुल और भागदौड़ से भरे हाइवे में से निकलती है - वो पतली सी एक सड़क।
जो पेड़ों से भरे एक रास्ते में कहीं खो जाती है। अगर कोई भूले भटके इस रास्ते पे निकल जाए तो तक़रीबन डेढ़ या दो किलोमीटर बाद एक छोटे से बगीचे के पीछे से एक पुराना मकान झांकता दिखता है। मानो कह रहा हो, "देखो मुझे भी, मैं कब से यहां रह रह हूँ।"
पर इस मकान से मिलने अब कोई नहीं आता।
लेकिन उस दिन शायद मकान भी उस लड़की को अपने सामने खड़े देख कर चौंक होगा।
अवनी, पहली बार इस मकान को देख रही थी, जिससे उसका एक खूबसूरत रिश्ता बनने वाला था। और मकान की हालत देख कर अवनी को समझ आ गया कि इसका किराया इतना कम क्यूँ है। आस पास ना कोई मकान, ना दुकान। लेकिन अवनी की माली हालत उस मकान की हालत से कुछ ज़्यादा अच्छी नहीं थी। नयी नौकरी, और नया शहर। घर से भी ज़्यादा पैसे मिलने की उम्मीद नहीं थी। पापा ने उसकी पढ़ाई पर इतना खर्च कर दिया था, वही बहुत था।
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