पिछले हफ़्ते ऑफ़िस की सीढ़ियों से पैर फिसलने से मेरी टांग टूट गयी। दर्द काफ़ी है, लेकिन टूटी हड्डी का नहीं, बल्कि घर से काम करने का। एक तो रह रहकर उठता दर्द, ऊपर से अम्मी को यही लगता है कि मैं छुट्टी लेकर आयी हूँ।
पर इन दिनों मेरा सबसे पसंदीदा काम होता है अपने कमरे की बाल्कनी में आराम से बैठ कर काम करना। मेरे कमरे से हमारे मोहल्ले का पार्क दिखता है, जिसमें बच्चे बूढ़े और जवान, सभी कैटेगरी के लोग आते हैं। इन्हीं लोगों में सबसे मज़ेदार मुझे एक कपल लगता है।
होता यह है की शाम होते ही, एक लड़का अपना स्कूटर पार्क के गेट के पास खड़ा करके, वहीं रखी एक बेंच पर बैठ जाता है। और थोड़ी ही देर बाद एक और लड़की, उस बेंच पर आकर बैठ जाती है। घने पेड़ के नीचे रखी उस बेंच पर उन दोनों ने अपनी दुनिया बसा रखी है। टिंडर और विडीओ कॉल के जमाने में ऐसा रेट्रो प्यार कहाँ मिलता है आजकल देखने को?
ख़ैर मेरी शाम की चाय उन्हीं दोनों को देखते हुए ख़त्म होती और उसके बाद अम्मी की आवाज़ आती, “अनम, कुछ खाएगी?” अम्मी की आवाज़ को सुनकर आप अपनी घड़ी मिला सकते हैं।
लेकिन उस शाम, अम्मी की आवाज़ नहीं आयी। लंगड़ाते हुए मैं घर के अंदर गयी, तो देखा, अम्मी, अपने बिस्तर पर बैठी, अपना चेहरा अपने हाथों में लिए बैठी थीं।
“क्या कर रही हो अम्मी? आज खाने को नहीं पूछोगी?”
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