वो कौन था ? (हिंदी हॉरर स्टोरी)

अपने नए घर में सिमरन का सामना होता है एक अजनबी से, जो पता नहीं क्या ढूँढ रहा था।


नया शहर, नयी नौकरी और नया घर, सिमरन के लिए सब ही नया था। शहर आने से पहले वो सोचा करती, की ऑफ़िस के बाद खूब घूमेगी और नए नए लोगों से मिलेगी, लेकिन काम करते करते कब उसका सारा वक्त ऑफ़िस में बीत जाता, सिमरन को पता ही ना चलता। घर जाने की भी फ़ुरसत उसे नहीं मिलती थी। उसका ऑफ़िस ही मानो, उसका घर बन चुका था।

ऐसे में जब उसे एक दिन उसकी पुरानी दोस्त रश्मि का फ़ोन आया, तो सिमरन बड़ी खुश हुई। रश्मि अपनी छोटी बहन प्रिया के साथ कुछ दिन के लिए सिमरन के पास आकार रहना चाहती थी। सिमरन को लगा की पुरानी दोस्त के होने से शायद उसकी इस बेरंग हो चुकी ज़िंदगी में कुछ नयापन आ जाए। और इसीलिए ना कहने का सवाल ही नहीं उठता था। सिमरन ने रश्मि को अपना पता दिया और बेसब्री से उसके आने का इंतज़ार करने लगी। 
अब तक सिमरन नाइट शिफ़्ट कर रही थी, लेकिन अपनी दोस्त के आने की खबर के बाद उसने अपने मैनेजर से लगभग लड़कर, डे शिफ़्ट ली। आज ये उसकी आख़िरी नाइट शिफ़्ट थी, और सिमरन ने सोच लिया था की सुबह घर पहुँचते ही वो रश्मि से मिलकर बीते दिनों की सारी भड़ास निकालेगी। यही सोचती हुई वो सुबह क़रीब 9 बजे घर पहुँची। लेकिन वहाँ का नजारा देख कर वो चौंक गयी। 
रश्मि और उसकी बहन प्रिया सहमे हुए बेडरूम में बैठे हुए थे। उनके सूटकेस और बैग्ज़ एकदम तैयार थे मानों उन्होंने खोले ही ना हों? 
“अरे, अभी तक बैग भी नहीं खोले तुम लोगों ने?” सिमरन ने पूछा। 
इस पर रश्मि ने उसे कोई जवाब ना दिया।  
“क्या हुआ?” सिमरन रश्मि की आँखों को पढ़ते हुए बोली। 
जैसे तैसे रश्मि के गले से उसकी आवाज़ निकली, “बैग तो कल दोपहर को ही खोल लिए थे सिमरन लेकिन अब हम जाने के लिए तैयार हैं।” 
“अरे पर क्या बात हो गयी? यार ऑफ़िस में काम कुछ ज़्यादा ही है। माफ़ कर दे। इतनी सी बात पे क्यूँ नाराज़ होती है?” सिमरन ने मिन्नतें करते हुए कहा। 
लेकिन रश्मि के मुँह से कुछ और ही निकल, जिसकी सिमरन को बिल्कुल उम्मीद नहीं थी, “सिमरन, तेरे इस घर में कुछ है यार।” 
सिमरन खड़ी खड़ी रश्मि का मुँह ताकती रही। पर रश्मि ने उससे बताया, “हम दोनों रात को गद्दे बिछाकर हॉल में सो रहे थे, कि तभी किचन का दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आयी। और साथ ही लाइट भी जल गयी। पहले मैंने सोचा की प्रिया किचन में गयी है, लेकिन ये तो मेरे पास ही सोयी पड़ी थी।”  
सिमरन ये सब सुन कर हैरान हो रही थी।  
“मैंने उठकर लाइट और दरवाज़ा बंद कर दिया और वापस आकर सो गयी, लेकिन फिर वही आवाज़ और लाइट जल गयी।” रश्मि ने इतना बोला ही था की उसकी छोटी बहन प्रिया अचानक बोल पड़ी,  
“और फिर दीदी, किचन से वो बाहर आया।” 
“कौन?” सिमरन को कुछ समझ नहीं आ रहा था। 
“मुझे क्या पता कौन था वो यार!” रश्मि इस बार झुंझला उठी, “वो लड़का किचन में से निकला और पूरे घर में इधर उधर घूमकर फिर से किचन में चला गया।” 

सिमरन के घुटने ढीले पड़ गए। वो रश्मि के पास बिस्तर पर गिरती हुई सी बोली, “क्या बात कर रही है रश्मि?” उसे यक़ीन नहीं हो रहा था की उसके इस घर में उसके अलावा कोई और भी रह रहा था। 
“तू, तू प्रिया से पूछ ले। इसने भी देखा था उसे।” रश्मि ने प्रिया को गवाह बनाए हुए कहा। 
“हाँ दीदी, वो लड़का किचन से बाहर आया और इधर उधर कुछ ढूँढने लगा। उसके बाद वो फिर से किचन में आया और ग़ायब हो गया।” प्रिया ने एक ही साँस में ये सब बोल दिया। 
“हाँ,” रश्मि ने अपनी बात ख़त्म की, “उसके काफ़ी देर बाद हम दोनों हिम्मत करके किचन में गए लेकिन वहाँ कोई नहीं था। पूरा घर भी हमने छान मारा लेकिन किसी के अंदर आने या बाहर जाने का कोई निशान नहीं मिला।” 
सिमरन को समझ नहीं आ रहा था की अपने सहेली को वो क्या बोले, लेकिन रश्मि अब वहाँ नहीं रहने वाली थी। उसने अपनी बहन को लिया और वहाँ से चली गयी। 
सिमरन अकेली बैठी अपने ख़ाली घर को ताकती रही। शाम हुई, और घर का अकेलापन मानो उसे काटने को दौड़ता। हर परछाईं और आवाज़ उसे डराती। लेकिन उसने हिम्मत ना छोड़ी। और रात का खाना बनाने के बाद सिमरन क़रीब 10 बजे अपने बेडरूम में सो गयी। 

रात के क़रीब 1 बजे कुछ अजीब हुआ। सिमरन की आँख एक शोर से खुल गयी। उसने हॉल में जाकर देखा, किचन का दरवाज़ा और लाइट खुले हुए थे। हिम्मत जुटा कर वो किचन में गयी, लेकिन वहाँ कोई नहीं था। सिमरन ने चैन की साँस ली। पर जैसे ही वो पीछे मुड़ी, एक लड़का उसके सामने खड़ा था। 

सिमरन की चीख जैसे उसके गले में ही अटक कर रह गयी। वो कुछ बोल पाती, इस से पहले इस लड़के ने सिमरन की आँखों में झांक कर पूछा, “तुमने देखा है क्या? मुझे मिल नहीं रहा।” 
सिमरन के दिमाग़ ने काम करना बंद कर दिया था। वो घबरायी हुई दीवार से किसी छिपकली की तरह चिपकी हुई खड़ी थी। जबकि वो लड़का बदहवास सा किचन के आस पास चक्कर काटे जा रहा था। ऐसा लग रहा था मानो वो कुछ ढूँढ रहा हो। 
“पापा के पेपर हैं उस बैग में।” ये कहते हुए वो लड़का अचानक फिर से सिमरन की तरफ़ मुड़ा और कुछ सोचते हुए बोला, “कहीं फ़ैक्ट्री में तो नहीं छोड़ आया मैं?” 
इसके बाद वो लड़का मुड़ा और किचन के अंदर घुसकर ग़ायब हो गया। लेकिन उसके ग़ायब होने से पहले सिमरन ने उसके सिर का पिछला हिस्सा देखा, जो था ही नहीं। जैसे किसी भारी ऐक्सिडेंट ने उसके सिर का वो हिस्सा उड़ा दिया हो। 
सिमरन दीवार से चिपकी किसी मूर्ति की तरह खाड़ी रही लेकिन वो लड़का फिर नहीं आया। थोड़ी देर बाद सिमरन के शरीर में हरकत वापिस आयी और वो लड़खड़ाते कदमों के साथ किचन के दरवाज़े तक गयी। उसने अंदर देखा, वहाँ कोई नहीं था।  
अगले दिन सिमरन ने अपने मकान मालिक को फ़ोन करके इस बात के बारे में बताया। लेकिन मकान मालिक ने उसे कोई सीधा जवाब नहीं दिया। पड़ोसियों से बात करने पर उसे पता चला की यह उस फ़्लैट का कोई पहले क़िस्सा नहीं था। इस फ़्लैट में कई साल पहले एक लड़का रहने आया था जिसकी मौत उसकी फ़ैक्ट्री में मशीन गिरने से हो गयी थी। वो लड़का अक्सर यहाँ रहने वालों को आज भी कभी फ़्लैट के बाहर और कभी कभी बिल्डिंग की गैलरी और लिफ़्ट में दिख जाता है। 
ये कहानी सुनाते वक्त सिमरन एकदम शांत थी। और वो तब भी उसी फ़्लैट में रह रही थी। मेरे पूछने पर उसने बताया कि इस घटना के बाद वो लड़का कई बार रात में किचन और हॉल में कुछ ढूँढता दिखता, लेकिन एक दिन घर की सफ़ाई करते वक्त सिमरन को बाल्कनी के नीचे वाली दूछत्ती पर एक पुराना बैग पड़ा मिला, जो शायद सालों से वहीं पड़ा था।  
सिमरन ने वो बैग उठा कर फ़्लैट के बाहर दरवाज़े पर रख दिया। और थोड़ी देर बाद जब सिमरन फिर से बाहर निकली, तो वो बैग उसे वहाँ नहीं दिखायी दिया। उस दिन के बाद वो लड़का फिर कभी नहीं आया। 
वो जो ढूँढ रहा था, शायद उसे मिल चुका था। 

(समाप्त)

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स्वप्निल नरेंद्र

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